चक्रव्यूह


चक्रव्यूह ये कैसा भाई ,
देख जाल ये  मुर्क्षा आई ,
बड़ी निराशा कँही न आशा ,
अन्धकार है बदली छाई ,
नैतिकता  का ओढ़ लबादा ,
ढोंगी करते छल कुटिलाई ,
रंगे सियारों की टोली है ,
सच्चा शेर न पड़े दिखाई ,
 चक्रव्यूह ये कैसा भाई.....
खड़ा ओंट में चोट करे नित ,
 पीठ में खंजर देत चुभाई,
अगर बहादुर सामने आओ ,
सिद्धान्तों की करे  लड़ाई , 
चक्रव्यूह ये कैसा भाई.....
करे सामने प्यारी बातें,
दोषों को गुण दे बतलाई,
बनके मित्र भेद ले दिल का ,
शत्रु को दे  भेद जनाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई....
गला काट प्रतिस्पर्धा है ,
सहकारिता कहीं ना पाई ,
टांग खींच लो बढ़े ना आगे ,
मेहनत पे विश्वास ना भाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
रक्षक ही भक्षक बन बैठा ,
सेवक  सुने न करे ढिठाई,
माली स्वयं बाग को काटे ,
क्या उपवन होगा सुखदायी,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
सत्य लगा बाजार में बिकने,
लम्पट बोली रहे लगाई,
भेड़-चाल है बुरा हाल है,
भ्रष्ट-भ्रष्ट मौसेरे भाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
जिसे समझ आदर्श पूजते,
 वह दल-दल में पड़े दिखई,
व्यक्तिवाद का दमन छोड़ो,
सिद्धांतो को लो अपनाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
घोटालो का मर्ज बढ़ रहा,
काले धन से कर्ज बढ़ रहा,
कमर तोड़ दे इनकी आओ ,
इन दोनों पे करे चढाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
राह कठिन हो चाहे जितनी, 
कष्ट विकट हो कितने भाई,
निज आशा विश्वास जगा लो ,
नैतिकता की कठिन लड़ाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
नया दौर है नयी सोंच है ,
नव सामाजिकता  नव अरुणाई ,
नए रूप में नया सवेरा ,
निश्चित  होगा अति सुखदायी ,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..

Comments

virendra sharma said…
मूर्छा है सही लफ्ज़ मेरे भाई ,रचना हमको बेहद भाई ,सेवक है जो करे सेवकाई ,अरि करनी करि करहीं लड़ाई ...तुलसी बाबा याद आ गएभाई ,ऐसी की हम पे कृपाई ..बहुत बहुत मुबारक इस साथक अर्थ और व्यंजना सज्जित रचना के लिए .
virendra sharma said…

चक्रव्यूह ये कैसा भाई ,
देख जाल ये मुर्क्षा(मूर्छा ) आई ,
बड़ी निराशा कँही न आशा ,
अन्धकार है बदली छाई ....देश की वर्तमान दुरावस्था रूपायित है इन पंक्तियों में ,

जिसे समझ आदर्श पूजते,
वह दल-दल में पड़े दिखई,(दिखाई )
रिमोटिया सरकार पर जबरजस्त कटाक्ष है इन पंक्तियों में ,
व्यक्तिवाद का दमन(दामन ) छोड़ो,
सिद्धांतो को लो अपनाई,

इटली अपना देश चलाई ,
क्यों मेरे भाई !
कमर तोड़ दे(दें ) इनकी आओ ,
इन दोनों पे करे (करें )चढाई,
राह कठिन हो चाहे जितनी,
कष्ट विकट हो कितने भाई,
निज आशा विश्वास जगा लो ,
नैतिकता की कठिन लड़ाई,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई..
नया दौर है नयी सोंच है ,
नव सामाजिकता नव अरुणाई ,
नए रूप में नया सवेरा ,
निश्चित होगा अति सुखदायी ,
चक्रव्यूह ये कैसा भाई.......इन्हीं आशावादी जोशीले स्वरों की आज ज्यादा ज़रुरत है मेरे भाई ,देश में ज्यादा है तरुनाई .......क्यों इटली से प्रीत लगाईं .
श्रीमान जी सार्थक और उद्देश्य युत टिप्पड़ी के लिए बहुत बहुत साधुवाद ,आप जैसे गुण ग्राहक अग्रज की सलाह और उत्त्साह्वर्धन से कुछ नया और उदेश्यपूर्ण लिखने की प्रेरणा मिलती है ,कविता सम्पादित करते समय वर्तनी में कुछ गलती रह गयी थी जिसे ध्यान में लाने के लिए फिर से बहुत बहुत धन्यवाद ।
virendra sharma said…
बिलकुल ठीक कहे हो भाई !
बिन भाषा उन्नति नहीं भाई ,
हिंदी की कर दो कुडमाई(सगाई ),
दक्षिण उत्तर ,उत्तर दक्षिण ,
सीख लो ओ !मेरे भाई !
अस्पताल में नर्सिंग करने बाद भी केरल की नर्स को अगर हिंदी नहीं आती तो कैसे संवाद करे ,मरीजों से भाई !
नोर्थ ईस्ट का वेटर कन्नड़ न सीखे तो क्या करे बेंगलुरु में भाई ?
भाषा जितनी सब भलीं ,भेद भाव को भूल ,
रोटी रोज़ी ढूंढ .
जहां कलह तँह सुख नहीं .कलह सुखन को सूल ,
सबै कलह इक राज में ,राज कलह को भूल ,
निज भाषा उन्नति आहै ,सब उन्नति को मूल ,
बिन निज भाषा ज्ञान के ,मिटे न हिय को शूल .
शुक्रिया भाई !स्नेह बनाए रहिये .हर पोस्ट उपयोगी है आपकी .
त्रुटियों को व्यवस्थित कर के ही तो आप इस मुकाम पर पहुचे हैं !!

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