चक्रव्यूह ये कैसा भाई , देख जाल ये मुर्क्षा आई , बड़ी निराशा कँही न आशा , अन्धकार है बदली छाई , नैतिकता का ओढ़ लबादा , ढोंगी करते छल कुटिलाई , रंगे सियारों की टोली है , सच्चा शेर न पड़े दिखाई , चक्रव्यूह ये कैसा भाई..... खड़ा ओंट में चोट करे नित , पीठ में खंजर देत चुभाई, अगर बहादुर सामने आओ , सिद्धान्तों की करे लड़ाई , चक्रव्यूह ये कैसा भाई..... करे सामने प्यारी बातें, दोषों को गुण दे बतलाई, बनके मित्र भेद ले दिल का , शत्रु को दे भेद जनाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.... गला काट प्रतिस्पर्धा है , सहकारिता कहीं ना पाई , टांग खींच लो बढ़े ना आगे , मेहनत पे विश्वास ना भाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. रक्षक ही भक्षक बन बैठा , सेवक सुने न करे ढिठाई, माली स्वयं बाग को काटे , क्या उपवन होगा सुखदायी, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. सत्य लगा बाजार में बिकने, लम्पट बोली रहे लगाई, भेड़-चाल है बुरा हाल है, भ्रष्ट-भ्रष्ट मौसेरे भाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. जिसे समझ आदर्श पूजते, वह दल-दल में पड़े दिखई, व्यक्तिवाद का दमन छोड़ो, सिद्धांतो को लो अपनाई, चक्रव्यूह ये कैसा भ