आदमी शैतान बनता जा रहा है
आदमी शैतान बनता जा रहा है
आदमी शैतान बनता जा रहा है ,
नित नए प्रतिमान गढ़ता जा रहा है ।
१-आदमी की आदमीयत खो गयी ,
आज क्यों कर नेक नीयत रो रही ।
सृजन क्यों विध्वंश बनता जा रहा है ?
२-क्यों नहीं संसाधनों में संतुलन ,
भिन्नता में एकता पर जोर कम ,
बिक रहा है नीर क्या कल वायु भी बेचेगा तू ?
ग्लेशियर हिमनद पिघलता जा रहा है -
३-भीड़ है लाखो करोड़ो लोग है ,
यांत्रिक सम्बन्ध बस गठजोड़ है ।
हो रही प्रतियोगिता पर स्वस्थ हो,
क्यों बिना उद्देश्य भगता जा रहा है ?
४- पाठशाला है बड़ी या विश्व गुरुकुल ,
अंग्रेजी बड़ी या हिंदी माँ - तुल्य ,
श्रेष्ठ कला है या विज्ञान है ,
शिक्षा का उद्देश्य मिटाता जा रहा है -
५-लूटता है आज भाई -भाई को ,
लूटता है आज राही - राही को ,
भूख से तू बिल बिला के मर रहा ,
मुझको तो भर पेट भोजन मिल रहा ।
क्यों सहज सम्बन्ध मिटाता जा रहा है ?
Comments
आदमी को शैतान बनते देख रहा है
जिस तरह बन रहा है कह रहा है
एक दिन ऎसा जल्दी ही आयेगा
सब शैतान होंगे बन चुके और
आदमी कहीं ना पाया जायेगा !
वर्ड वेरिफिकेशन ह्टा लेंगे तो टिप्प्णी कर्ता को आसानी हो जायेगी !
यांत्रिक सम्बन्ध बस गठजोड़ है ।
हो रही प्रतियोगिता पर स्वस्थ हो,
क्यों बिना उद्देश्य बगता जा रहा है -भीड़ है लाखों ,करोड़ों लोग हैं ,यांत्रिक सम्बन्ध बस गठजोड़ हैं ,हो रही प्रतियोगिता पर स्वस्थ हो ,क्यों बिना उद्देश्य भगता जा रहा है .....अच्छी रचना है भाई साहब! अनुनासिक /अनुस्वार का कृपया ध्यान रखें ...बिंदी की हिंदी न करें ......कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
What Puts The Ache In Headache?
कविता बहुत अच्छी है.